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छोटी छोटी सी बाते

छोटी छोटी सी बाते
छोटी छोटी सी बाते
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हम व्यवस्थित समाज की कल्पना तो जरुर करते है, पर खुद व्यवस्थित नहीं होते, हमें सब कुछ साफ़ सुथरा चाहिए भले ही वो गंदगी हम ही क्यों न कर रहे हो। चलो एक खाका खिचता हु, ऐसा सोचो की आपके घर कोई शादी पड़ी है, कोई छोटा महोत्सव या किसी का जन्मदिन, आपने बहुत से लोगो को बुलाया है। सब लोग आते है, धूम धड़का होता है और सब चले जाते है। उनके जाने के बाद आप पाते हो की आपके सोफे के नीचे किसी ने केक का टुकड़ा रख दिया है, किसी ने आपके घर के पर्दों मे हाथ पोछ लिया है, या आपके बाथरूम मे किसी ने पान थूक दिया हो तो आपको कैसा लगेगा? मुझे तो बहुत बुरा लगेगा और सभी को बुरा ही लगाना चाहिए। इसे ही जीने का ढ़ंग कहते है, छोटी से छोटी बात सामने वाले के चरित्र का खाका खिचती है। पर प्रश्न यहाँ ये है की आपको बुरा क्यों लगा? ये आपका घर था इसलिए ही आपको बुरा लगा।
अब करते है मुद्दे की बात जैसे घर आपका, तो ये शहर और ये देश भी आप का ही है। तो क्या ये शिष्टाचार आपको छड़ी लेकर समझाना होगा की अपने शहर को पान की थूक से गन्दा न करे। एटीएम मशीन मे डस्टबिन होने के बाद भी कागज इधर उधर फेका रहता है ये आपके बुरे चरित्र का ही व्याख्यान करता है। रोज अखबार मे संस्कार का ज्ञान आता है, पर आपके पास करने को बहुत कुछ है पर उसे पढने का समय नहीं। मुझे ये कहते बिलकुल भी अफ़सोस नहीं है की, अगर आज भारत देश गंदगी से भरा है, तो सिर्फ और सिर्फ ऐसे शिष्टाचार की वजह से जहाँ देश के नागरिक को ये नहीं पता की पान खाकर थूकना कहा है। शुरवाती शिष्टाचार का पालन तो हर कोई कर ही सकता है। जैसे किसी महिला या बूढ़े व्यक्ति को अपनी जगह बैठा कर, क्रमबद्ध तरीके से मेट्रो मे घुस कर ,पान व् गुटखा इधर-उधर न थूक कर, एटीएम मशीन मे डस्टबिन मे ही कागज डाल कर , रेल की पटरी पर कोई बोतल या सामान न फेक कर और ऐसी बहुत सी छोटी छोटी सी बाते है जिसका हम अपने जीवन मे पालन कर सकते है, और अपने देश को साफ़ रख सकते है। पर इस बात पे ये कह देना की भारत बस चल रहा है, या सरकार का दोष है तो उपयुक्त नहीं होगा। आप अपने घर मे किसी का थूका साफ़ करने मे असहज महसूस करते होगे, वैसे ही आपका का थूका या गंदगी सरकार या कोई और क्यों साफ़ करे।
कही पढ़ा, एक वाक्यांश याद आता है।
एक व्यक्ति बस मे बैठा था और एक बुढा व्यक्ति बार बार उससे अपनी सीट देने का आग्रह कर रहा था पर वो व्यक्ति मनाने को तैयार ही नहीं था। बहुत बार कहने पर बुढा व्यक्ति शांत हो गया और अपनी जगह ही खड़ा रहा, ये सब देख कर कंडक्टर बैठे हुए व्यक्ति के समीप आकर कहा की आप अपने पीछे अपना कुछ छोडे जा रहे है, व्यक्ति पीछे पलट कर देखता है और कुछ न दिखने पर पूछता है की क्या? मेरे पीछे तो कुछ भी नहीं छुटा है।
तो कांडडक्टर कहता है आपका “बुरा चरित्र”
तो बस यही आप के साथ है बस से हाथ बहार निकल कर केले का छिलका सड़क पर फेकना आपका चरित्र ही दर्शाता है। अगर अच्छे है तो पूरी तरह से अच्छे बने। अपने जीवन मे हर अच्छी बातो को अपनाये और ये बाते उनमे से ही एक है। पर आज भी मै संदेह मे हु की आप समझेंगे, पर वक्त सबको, सब कुछ समझा ही देता है।
एक बार एक छोटा बच्चा अपना आधा शारीर कुए मे घुसाकर अन्दर देख रहा था। सामने ही उसकी माँ बैठ कर कपडे धो रही थी। पर ये बात वहा से गुजरते हुए एक पथिक को अच्छी न लगी और वो पूछ बैठा- की तुम अपने बच्चे को समझती क्यों नहीं? कही वो कुए मे गिर गया तो?
उस औरत ने मुस्कुराकर उस पथिक को देखा और बोली मै तो इसे कई बार समझायी हु पर अब इसे कुआ ही समझाएगा।

यतीन्द्र पाण्डेय

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