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जाति के मतभेद

छोटी छोटी सी बाते
छोटी छोटी सी बाते
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अरे,

कब तक जियोगे जाति के मतभेद मे,

अब तो जीना सिख लो इस नए परिवेश मे,

चमार को चमार कहकर,

ब्राह्मण ऊँचा नहीं हो सकता,

ऊँचा तो वो होता है,

जो सबको गले से लगाये,

छोटी जाति का टिका देकर,

कोई छत्रिय नहीं हो सकता,

छत्रिय तो वो है,

जो मानसिकता ऊँची उठाये,

परिवर्तन दुनिया की रीत है,

मै नहीं,

गीता ऐसा कहती है,

और कहने वाला यादव था,

तो ब्राह्मण के कान मे क्यों गुजती है?

क्या ईश्वर की जात पूछ कर उसकी पूजा करते हो,

तो इंसानों को जात के तराजू पे क्यों तोलते हो?

इस प्रकृति,

हवा,

सूरज,

चाँद,

रात,

मौसम को,

जाति मे क्यों नहीं बाट देते हो?

ब्राह्मण की हवा,

छत्रिय का सूरज,

क्या कर सकता है कोई ऐसा?

दूध मे घुल गयी चीनी को निकालने जैसा,

अरे द्वेश अहंकार त्याग दो,

नए परिवेश को अपना लो,

जाति की बातो से विरक्त होकर,

इंसानियत को गले लगा लो।

इंसानियत को गले लगा लो।

यतीन्द्र पाण्डेय

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