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बेतरतीब से रौंद दी गयी वो जिन्दगी,
जहाँ मुस्कुराने की लॊ थी,
हादसों से तौल दी गयी आज जमी,
जहाँ किलकारियों की गुज थी,
तव्ज्जोब नहीं देते हम इन बातो को,
गर आज जिन्दगी,
मेरी नहीं बचती,
होशियार है हम,
होनहार है हम,
आकंछाओ से ऊपर उड़ने को,
तैयार भी है हम,
पर मृत्यु को विस्तारित नहीं कर पाते हम,
पर मृत्यु को विस्तारित नहीं कर पाते हम,
मासूमियत अठखेलिया खेलती रही,
और वो खून की नदिया बहाते रहे,
हम इसे खबर बनाते रहे,
पर मृत्यु को विस्तारित नहीं कर पाते हम,
उन आँखों से बहते आसुओ को तौल के देखो,
ऊचा उड़ने से पहले आधार तो देखो,
अरे उदु,
के खौफ़ से कब तक भागोगे?
आज तलवार उठा के तो देखो,
जब जब जुल्म ने अपनी
डाल फैलाई है,
कोई न कोई माली ने आकर
उसकी छाट लगाई है,
आज हमे वो माली बनना है
हादसों की तौल को कम कर
खुशियों का अधिपत्य जमाना है
रंग बिरंगे सपनो को
स्वाभिमान के पंख लगाना है
तब मृत्यु विस्तारित होगी
जब जिन्दगी की उम्र पूरी होगी
पर प्रश्न आज भी वही है
की पहल कौन करे
पहल कौन करे?
यतीन्द्र पाण्डेय
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