जब मै छोटा था, तो एक दिन गुसलखाने मे शीशी मे रखे एक पीली पानी के बोतल को देखा मैने अपनी माँ से पूछा ये क्या है? माँ ने कहा तेज़ाब है, इससे गुसलखाना सॉफ किया जाता है. इसे हाथ मत लगाना नही जल जाओगे. बात मेरे कुछ समझ मे नही आई की पानी से भी कोई जलता है क्या? पर जब माँ गुसलखाना धो रही थी तो मैने चुपके से देखा की वो पीला पानी ज़मीन मे गिरते ही झाग देता है और वो पूरी जगह जहाँ काई ज़मी है, सफेद होते जा रही है.
दसवी क्लास मे, रसायन विज्ञान का प्रयोग चल रहा था मै क्लास मे लेट पहुचा तो देखा सर नमक मे कुछ मिलाकर सबको दिखा रहे है, मैने पूछा सर ये क्या है? सर ने कहा ऐसिड यानी तेज़ाब ये सुनते मै बोल पड़ा सर इससे तो गुसलखाना सॉफ करते है न, ये सुनते वहाँ सब हस पड़े और उस दिन मुझे पता चला की तेज़ाब रसायनिक पदार्थ है और उसके कई रूप है.
उम्र २४ साल, पूरी तरह से परिपक्व होने पर एक दिन अख़बार पढ़ते समय मैने पाया की एक लड़के ने एक लड़की के मुहं पर तेज़ाब फेख दिया, ये सुनकर बचपन की सारी घटनाए मेरे सामने आ गयी चाहे वो गुसलखाना धोना हो या रसायनिक प्रयोग, पर इस उम्र मे मुझे ये पता चला की तेज़ाब का एक ये भी ईस्तमाल हो रहा है.
अब सारी बातो को एक तरफ रख देते है अब मै प्रश्न पूछता हू की क्या वो मर्द, लड़का या आदमी जो किसी लड़की या स्त्री के उपर तेज़ाब फेकता है, उसके चेहरे को, उसके शरीर को, उसके जस्बातो को जलाता है उसे क्या लगता है की वो लड़की उसके उपर तेज़ाब नही फेक सकती? हां… फेक सकती है. तेज़ाब से जलने का दर्द तुम्हे भी होना चाहिए. तब शायद तुम अहसाँस करोगे की उस लड़की की पीड़ा क्या थी?
ऐसे कई रसायनिक पदार्थ है जीसे आम आदमी खरीद नहीं सकता तो फिर तेज़ाब पर सरकार ने प्रतिबंध क्यू नही लगाया? बल्कि उसको फेकने वाले की सजा कितनी होंगी ये ही सोचते रहे और बकायदा बहस भी की तेज़ाब फेकने वाले को उम्र क़ैद नही होगी.
बस जलने वाले को होंगी.
आज बाजार मे गुसलखाना धोने के लिए तमाम प्रॉडक्ट उपलब्ध है, फिर भी तेज़ाब की माँग क्यू होती है? यहाँ आम आदमी मे जागरूकता की ज़रूरत है की वो ऐसे रसायनिक पदार्थो को कम से कम प्रयोग मे लाए.
हर दिन किसी न किसी मासूम को तेज़ाब से जलाया जा रहा है पर कोई जागरूक ही नही होता हाँ हमारे जैसे कुछ लोग लिख देते है, और कुछ लोग उस जली हुई लड़की की फोटो को सोसल नेट वर्किंग साइट पे लगा के खुद को जिम्मेदारी से मुक्त कर लेते है पर चेतते नही है.
एक गली मे मिठाई की एक दुकान थी वो मिठाई तो अच्छी नही बनता था पर जब भी उधर से गुजारो मिठाई की खुसबु नाक मे आती थी. कभी-कभी दुकान बंद हो तब भी खुसबु आती थी.
दरअसल उस जगह को भी उसी तरह महकने की आदत हो चुकी थी.
बस यही हमारे साथ है, बाते तो सब करते है. पर महकते एक जैसे ही है.
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