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प्यार बचपन का

छोटी छोटी सी बाते
छोटी छोटी सी बाते
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प्यार  बचपन  का

  

सवेरे  सवेरे  यारों   को  लेकर, 

पार्को में  निकलते  थे  हम, 

कभी  मंदिर, 

तो  कभी  सड़कों   पर  घूमते  थे  हम,

मकसद  तो  अपने  प्यार  का  दीदार  था, 

इसीलिए  बेचैन  रातों में  सोते  थे  हम,                

साईकिल ही  हमारी  माध्यम   थी,  

इसलिए  रस्ते  हमें  बड़े  नहीं  लगते  थे,

उसके  आने  से  पहले  पहुँच कर, 

कभी  छीप कर,

तो  कभी  सामने  से  ही

आहें भरा करते थे,

एक  नजर  वो  हमें  देख  क्या  ले, 

हम  ईश्वर   के  चरणों में गिर  पड़ते  थे, 

बचपन  का  ये  प्यार  अनोखा  था,

एक  लड़की  के  लिए, 

हम  पागल  बने  बैठे  थे,

ऐसी  चीजों  पर, 

सलाहकार  बहुत  थे,

क्या  करो  क्या  न  करो, 

बताने  वाले  बहुत  थे,

वही, 

मजनूं   गिरी  पे 

मजा  लेने  वाले  भी  बहुत  थे,

पर  इस  अहसाँस    को 

सिर्फ  सच्चे   दोस्त  ही समझते  थे,

उन  गुलाबी  दिनों  को  हम  कभी  भूल  नहीं  पाते, 

क्यूँकी    हम  उन्हें  दिल  से  प्रेम  करते  थे,

पर  इस  प्यार  का  बंटाधार  तो  कब  का  हो  गया, 

क्यूँकी   बचपन  में   हम  शुतुरमुर्ग  की  तरह  दिखते  थे,

हाँ:

छ:  साल  के  इस  प्यार  में,

 हम   जानवर  बने, 

वो  बनी  हसीना,

मंदिरों  की  दीवारों  पर, 

आज  भी  लिखा  है,

 

आज  भी  लिखा  है,

 

यतीन्द्र  वेड्स  मिना,

 

 

यतीन्द्र  वेड्स  मिना,

 

 YATINDRA PANDEY

 

 

 

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