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हमारी यादाशत

छोटी छोटी सी बाते
छोटी छोटी सी बाते
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हमारी यादाशत


इस बात को मै पुर्णतः सत्य मानता हूँ  क्यूंकि  हमारी यादाशत जितनी कमजोर है उतनी निरर्थक भी. अगर किसी को बुरा  लगा हो तो क्या करें  सच तो कड़वा  होता ही है. अगर आप मुझसे  किसी तथ्य की उम्मीद कर रहे है तो जरुर करे क्यूंकि  अगले कुछ पल में  मैं आपको ऐसे ही  कुछ  तथ्यों  से अवगत कराऊंगा.

“अन्ना हजारे”, एक बड़ा नाम, मुझे लगता है आप सभी को ये व्यक्ति याद होगा और अगर कमजोर यादाशत के कारण भूल गए हों तो याद दिला देता हू कि ये वही इंसान है जिसने भारत में  “जानने का अधिकार” यानि “आर टी आई” को जन्म दिया था. ये वही इंसान है जिसने कुछेक लोगों को इतना प्रसिद्द  कर दिया की वो ये कामयाबी सम्हाल ही नहीं पाए. प्रश्न ये है की मेरे लेख से इन सब बातों का क्या लेना देना है, तो इस पर भी नजर डालते है.
देश मे एक कोहराम मचा, “मै भी अन्ना , तू भी अन्ना अब तो सारा देश है अन्ना”, हर किसी के माथे  पर लिखा  था “मै हूँ अन्ना” ,  जन आन्दोलन हुआ देश का हर नागरिक सड़को   पर था, घर-घर के द्वार  आन्दोलन के प्रतीक  बन गए. हर इंसान परेशान था. सोचा कुछ बदलाव होगा.इस आन्दोलन ने  बड़े बड़े नेताओ की  बुनियाद   हिला दी थी . अन्ना का अनशन जारी था, देश उबाल पर था, वादे हुए, मामला सुलझाया जाने लगा और  अन्ना का अनशन टूट गया. हमने क्या माँगा था?

याद है “जन लोक पाल बिल”, ये वहीँ है जो  देश के गलियारों से घूमते हुए संसद मे भी टहल कर आ गया पर उसकी सुध किसी ने नहीं ली. धीरे-धीरे हम सभी अपने कमजोर यादाशत  के शिकार हो गए. भूल गए सब और ये वाक्यांश राजनीति की इतिहास  रूपी किताब का एक और अध्याय बन कर रह गया.
अब लेखकों का प्रिय विषय “बलात्कार” के बारे में– ऐसा लगता है जैसे इस दुःख को हमसे जादा कोई और  नहीं समझता.  पता नहीं एक बार उस विषय पर लिख कर हम उसे पढ़ते भी है की  नहीं. प्रतिक्रिया मिल  जाये बस, हम सोचते है की हम कामयाब हो गए. हमारा लिखना सार्थक हो गया, पर ऐसा है नहीं हम क्यों उसी समय लिखते है जब किसी की तोहमत  लुटती है, क्या हमारा दुःख उसी समय बाहर आता है. “दामिनी” का क्या हुआ? मिला उसको इन्साफ? कर दी गयी न  राजनीति उसके साथ भी. दिमाग  पर गिरी मिट्टी को  हटाये. मैं  उसी दामिनी की बात कर रहा हूँ , जिसके लिए जन सैलाब सड़को पर था न जाने कितनों ने डंडे खाए. पर निकला सब धाक  के तीन पात, न जाने कितनी मोमबतियां  जली और बुझ  गयी, लगा था अब देश में परिवर्तन आएगा महिलाओं  की स्थिती  सुधर जाएगी पर हुआ कुछ नहीं क्यों वजह सिर्फ एक है हमारी यादाशत   जो कमजोर है हम बहुत जल्दी सब भूल जाते हैं .
अब में  जिसके बारे में  जिक्र करने जा रहा हूँ  उसको तो सभी पूर्णतः भूल चुके होंगे  नाम है “स्वामी निगमानंद” , ये वही व्यक्ति थे   जिसने चार माह तक गंगा को साफ़ करने के लिए अनशन किया. १२१ करोड़ की आबादी में सिर्फ इन्हें ही गंगा साफ़ करने की क्यों सूझी? पर जवाब  जो भी सोचा जाये  सब छोटे और बौने ही दिखेंगे. वो मृत्यु की सैया पर लेट गएँ   और हम राजनीति ही करते रह गए. और इसे भूल गए, क्यों? वजह वही पुरानी हमारी यादाशत ?
देश मे आतंकी हमले हो जाये , नक्सली हमले हो जाये किसी का बलात्कार हो भूकम्प  आये या सुनामी हम सब भूलने वाली यादाशत  रखते है,अब ये कोई छोटी बात भी तो  नहीं.
ये भारत देश है दयालुता का प्रतिक जहाँ हमारे लोगों को मारने वाले या बलात्कार करने वालों को हम खिलाते-पिलाते है. मन किया कभी तो फांसी भी दे देते है पर इसी देश में  बिना कुछ किये एक गरीब किसान  खुद ब खुद फांसी  लगा लेता है और हम राजनीति ही करते रह जाते हैं और आम आदमी भूल जाता है, वजह सिर्फ एक वही पुरानी अपनी  कहानी “यादाशत  कमजोर हमारी”.
कितने भी बादाम खा लो,
या अपने बच्चो को खिला लो,
स्कूली परिछा में  वो अव्वल आ भी जायेगा,
पर नैतिकता के बाजार में,
अपनी यादाशत भूल ही जायेगा,
क्यूंकि वो शून्य समाज का,
हिस्सा जो बन जायेगा

मैंने जो भी लिखा है ये मेरे ह्रदय के उद्गार है शर्म है की मै  इस शून्य समाज  में  पैदा हुआ और इसका हिस्सा भी  हूँ  और मै ये भी जनता हूँ  की जितना जल्दी आप इसे पढ़ेंगे उतनी ही  जल्दी भूल भी जायेंगे, क्यों?
वजह सिर्फ एक है “हमारी यादाशत” 
हाँ 
“हमारी यादाशत”

यतीन्द्र पाण्डेय 

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