Menu
blogid : 14266 postid : 695655

दो सौ में अंतिम संस्कार (कांटेस्ट)

छोटी छोटी सी बाते
छोटी छोटी सी बाते
  • 49 Posts
  • 191 Comments

दो सौ में अंतिम संस्कार

 

कल रात मैं चैन से सो नहीं पाया|पड़ोस के घर से आ रही रोने की आवाज मुझे विचलित कर रही थी| ये तो समझ गया था की कोई मट्टी हो गया है.. पर कौन? मुझे नहीं पता? गलियों में गाड़ीयों का शोर भी बढ़ रहा था, पर फिर भी वो चीत्कार मुझे बेचैन कर रही थी| अत्यधिक विचलित होने पर मैं कमरे में ही टहलने लगा|खिड़की से बाहर आती जाती गाड़ीयों को देखने लगा|ओह्!ये रोना, चीखना,चिल्लाना,मेरे तन-बदन को जला रहा था|करीब रात के २ बज रहे थे,आँखों में आ रही नींद को मैं रोक न सका और तकिये से मुह दबां कर सो गया| अभी मेरी आंख लगी ही थी की अचानक एक कुत्ते की चिल्लाने की आवाज से मैं फिर से उठ पड़ा,बाहर देखा कोई कुत्ता गाड़ी के नीचे आ गया था और सभी कुत्ते गाड़ी वाले पर भौक रहे थे| पर अब मुझे सोना था कैसे भी? उन चिल्लाहट को दरकिनार कर मैं गहरी नींद के आगोश में चला गया|

प्रातः ७ बजे मेरी नींद फिर इसी तरह के शोर से खुली|मैं उठ कर बाहर निकला तो देखा मेरे ही दरवाजे पे एक कुत्ते का पिल्ला मरा पड़ा है|वो वही था,जो रात में गाड़ी के नीचे आ गया था|मैं अफसोस से उसकी तरफ देखा और नजर घुमाई तो चार घर छोड़ कर एक वृद्ध व्यक्ति मट्टी हो गया था, उनका पार्थिव शरीर सजा हुआ था| मै उन्हें जानता तो नहीं था पर कभी-कभी गली के कुत्तों को दूध पिलाते देखा था|तभी हमारे मकान मालिक आ गए और सामने वृद्ध व्यक्ति की मिट्टी को प्रणाम किया, और बोले… “अच्छे आदमी थे”| तभी उनकी नज़र मरे हुए कुत्ते के पिल्ले पर पड़ी और ये देखकर वो भड़क पड़े|अरे यार..“इसे यही मरना था”…और सामने से आ रहे कूड़े वाले को उसे उठाने को कहा…कूड़े वाले ने भी तन कर ५०० रूपए की मांग कर दी|थोड़ी झक-झक के बाद बात २०० रूपए में तय हो गयी| मकान मालिक ने २०० रूपए दिए और कूड़े वाले ने कुत्ते को उठा लिया|

उस बूढ़े व्यक्ति की अर्थी मेरे सामने से गुजरी मैंने उसे प्रणाम किया और वहीँ से उस कुत्ते की भी मट्टी गयी मैंने उसे भी ……

मौत एक होती है,

पर व्यवहार एक नहीं,

आत्मा एक होती है,

पर अंतिम संस्कार एक नहीं|

 

यतीन्द्र पाण्डेय

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply