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किसी और के लिए दुआ मांग के तो देखो

छोटी छोटी सी बाते
छोटी छोटी सी बाते
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किसी और के लिए दुआ मांग के तो देखो

राह चलते मेरी जिन्दगी ये देखेगी मैंने नहीं सोचा था करीब ६ बार प्रयास करने के बाद आज मैं ये लिख पा रहा हूँ ये एक ऐसा मंजर था जो मेरे दिल और जज्बातों को धराशयी कर गया था.

बात ज्यादा पुरानी नहीं थी, करीब ४ महीने पहले मैं अपने चाचा के साथ एक सफ़र पर निकला| बड़ी मसकतो के बाद हमें ट्रेन की टिकट मिली थी और ऐसा ही कई यात्रियों के साथ भी था, सफ़र लम्बा था और वेटिंग भी इसलिए दो सीटो के बीच भी सोने के लिए मारामारी थी.इसी दरमियां हमें पता चला की सामने की दो बर्थ खाली है और उसे पाने के लिए टीटी से प्रयास करने वालो की भीड़ ही लग गयी. इसमे जीत उन चार लडकों की हुई जो टीटी को करीब ७०० रूपए दिए, और उन बर्थो पर दो-दो करके लेट गए. अब हमारे अपार्टमेंट की सारी सीटें भर गयी थी इसलिए शोर भी कम हो गया. मैं और चाचा खाना खाएं और नींद की आगोश में चले गए. पर ये नींद मुझे इतनी आसानी से नहीं आती  इसलिए मैंने मेलुहा की मृत्युंजय पढना शुरू किया. अमिश जी ने एक बेहतरीन कल्पना के माध्यम से ये पुस्तक लिखी है. किताबा पढ़ते-पढ़ते मेरी आँख लग गयी और मैं भी नींद के अगोश में जाने लगा.

तभी एक शोर से मेरी नींद टूट गयी, पूछने पर पता चला की वो दो बर्थ जो टीटी ने उन लडकों को बेचीं है वो अगले स्टेशन पर आ गया है. मैंने उसे देखा एक तंग सा इंसान जो बार-बार उन लड़कों को सीट से उतरने को कह रहा था. साथ में दो महिलाएं थी, एक करीब २५ साल की और एक ६० साल से ऊपर. बार-बार कहने पर भी लड़के सीट छोड़ने को तैयार नहीं थे. अब वो आदमी रुवाशा हो रहा था. ये देख कर मैंने उससे कहा “की आप टीटी से बात क्यों नहीं करते…. आप उस स्टेशन से नहीं चढ़े इसलिए टीटी ने ये टिकट इन्हें दे दी, इसमे इनका भी कोई दोष नहीं आप एक बार टी टी से  मिल के देखें ”. वो व्यक्ति मेरी बात सुनकर भागा-भागा गया और करीब १०  मिनट बाद बहुत निराशा के साथ वापस आया और बताया की यहाँ से टीटी बदल गया है. वो लाचार था. कोई रास्ता न पाकर उसने बड़े ही आग्रह से उन लडकों से कहा…… की आप लोग हट जाये.. मुझे बेहद जरुरत  है… मेरे साथ रोगी है. लड़के हठी थे. वो भी एक सुर में बोले की हमारे साथ भी रोगी है, वो व्यक्ति रोते हुए कहा पर कैंसर का तो नहीं न…..

ये बात सुन कर मैं अचंभित हो गया. वो व्यक्ति निराश होकर वही जमीं पर चादर बिछा कर अपनी पत्नी को बैठने को कहा सामने वाली औरतो से बात करते वक्त मैंने ये जाना की वो औरत गर्भवती है और कैंसर से पीड़ित भी… ये बात मुझे अन्दर तक जला गयी मैं बर्दाश्त नहीं कर सका और अपनी जगह से उठ कर कहा की आपको जमींन पर सोने की जरुरत नहीं आप मेरी जगह हो जाये. मैं  अपने चाचा के साथ एक ही बर्थ पर सो जाऊंगा. ये बात सुनकर वो व्यक्ति बेहद खुश हुआ और मुझे कई बार धन्यवाद दिया. मैं अपने चाचा के साथ लेट गया मेरे आंखो में बरबस ही आंसू निकल रहे थे मैंने आँख बंद की और प्रार्थना की…. हे ईश्वर, उसको ठीक करदे मेरी कोई एक विश ले ले, पर उसे ठीक कर दे. मुझे इस प्रार्थना से बहुत बल मिला,आत्मिक शांति मिली, उस दिन मुझे अहसास हुआ की दुसरे के लिए दुआ मांगने पर कितना अच्छा लगता है. हम हमेशा कुछ न कुछ भगवान् से मांगते ही रहते है पर वो चीज़ मिलने पर भी शायद वो संतोष न मिले जो मात्र किसी और के लिए दुआ करने से मिलता है. उस दिन से मेरे अन्दर आत्मीय परिवर्तन आया. अब मैं हमेशा प्रयास करता हूँ की किसी भी महिला के लिए  मुझसे जो भी बन पड़े मैं करूँगा. अंत में बस इतना ही……

हमे शौक नहीं है,

गम तौलने का,

हमे शौक है गम, कम करने का..

हम नहीं चाहते की हम पर्वत से ऊपर हो जाये,

हम तो चाहते है की,

हमारे नन्हें कदमों से,

पर्वत भी द्रवित हो जाये..

 

यतीन्द्र पाण्डेय

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